User talk:Shriguru1008
This is Shriguru1008's talk page, where you can send them messages and comments. |
|
Your submission at Articles for creation: sandbox (July 3)
[edit]- If you would like to continue working on the submission, go to User:Shriguru1008/sandbox and click on the "Edit" tab at the top of the window.
- If you do not edit your draft in the next 6 months, it will be considered abandoned and may be deleted.
- If you need any assistance, or have experienced any untoward behavior associated with this submission, you can ask for help at the Articles for creation help desk, on the reviewer's talk page or use Wikipedia's real-time chat help from experienced editors.
Hello, Shriguru1008!
Having an article draft declined at Articles for Creation can be disappointing. If you are wondering why your article submission was declined, please post a question at the Articles for creation help desk. If you have any other questions about your editing experience, we'd love to help you at the Teahouse, a friendly space on Wikipedia where experienced editors lend a hand to help new editors like yourself! See you there! DoubleGrazing (talk) 13:48, 3 July 2024 (UTC)
|
Your submission at Articles for creation: sandbox (July 3)
[edit]- If you would like to continue working on the submission, go to User:Shriguru1008/sandbox and click on the "Edit" tab at the top of the window.
- If you do not edit your draft in the next 6 months, it will be considered abandoned and may be deleted.
- If you need any assistance, or have experienced any untoward behavior associated with this submission, you can ask for help at the Articles for creation help desk, on the reviewer's talk page or use Wikipedia's real-time chat help from experienced editors.
SHRI SHRI 1008 GURU PHOOLNARAYAN JI MAHARAJ BIOGRAPHY
[edit]वि. सं. 1864, आषाढ शुक्ला 3 को मंत्रोपदेश एवं संन्यास दीक्षा देकर अपना शिष्य बनाया और फूलनारायण नाम रखा। फूलनारायण जी ने गुरु आदेश अनुसार श्री सुरेश्वर महादेव मंदिर पर जाकर कठोर तपस्या की। लेकिन इस दौरान वे गुरुसेवा भी पूरी लगन से करते थे। श्री नारायण स्वामी द्वारा बनाये आश्रम को उनके बाद गादीधारी के रुप में फूलनारायणजी ने ग्रहण किया एवं परकोटा आदि बनाकर उसे भव्य रुप प्रदान किया। वि. सं. 1905 में श्री गुरु फूलनारायण बावड़ी खुदवाई। स्वामीजी के चमत्कारों को सुनकर समाधी अनेक भक्तगण वहा आने लगे। श्री तख्तसिंह जी महाराज, जोधपुर भी वाहा सपरिवार पधारें जो माघ शुक्ला 5 वि. सं. 1909 का पावन दिन था। तख्तसिंह जी गुरुदेव के आशीर्वाद से प्रभावित हुए एवं नारायण स्वामी को भेट की गई जमीन को गुरु फूलनारायणजी के नाम कर दिया। जो लगभग सवा तैतीस बीघा (जमाबंदी 747 खसरा नं. 427) एवं श्री सुरेश्वर महादेव की जमीन सवा छः बीघा (जमाबंदी 1311 खसरा नं. 1) गुरुदेव केनाम की । सुरेश्वर महादेव में तपस्या के दौरान उन्होंने वि.स. 1892 में एक कुआ भी खुदवाया एवं वि. सं. 1903 में धर्मशाला रूपी कमरे भी बनवाए। वि.स. 1914 में शिवलिंग एवं नन्दी की स्थापना कर इसे विधिवत सुरेश्वर महादेव का नाम दिया। इसी प्रकार आश्रम में मुख्य प्रवेशद्वार एवं मुख्य भवन व कमरे भी उन्हीं के समय में बने। उनकी तपस्या एवं तेज के प्रभाव से देशभर से उनके भक्तगण इस आश्रम में आज भी आकर गुरुप्रसाद पाते है। श्री गुरुदेव, स्वामी रामकषण परमहंस के समकालीन थे एवं इनकी भेंट का उल्लेख कलकत्ता के पुस्तकालय के ग्रंथानुसार डा. पी.आर. शर्मा, संचालक रामरुक्मणीकेन्द्र जिनेवा ने किया है । गुरुदेव ने देवप्रेरणा से 55 वर्ष के सन्यासी जीवन पश्चात् वि सं. 1919 कार्तिक शुक्ला 14 को सूर्योदय वेला मे समाधी ली। क्रमश : गुरु भक्ति सर्वोपरि ।
श्री गुरु फूलनारायण आश्रम न्यास सोजत सिटी
||गुरुदेव की लीला||
1.श्री गुरुदेव गर्मी में नदी की रेत पर, वर्षा में खुले गगन के नीचे एवं सर्दी में जल में खड़े रहे एवं शिव आराधना करते हुए अनेक सिद्धियां प्राप्त की।
2. गुरु नारायण स्वामी द्वारा प्रदत्त मृगछाला को प्रसाद समझ घोटकर पी गये एवं साक्षात शिव के दर्शन किये।
3.गुरु नारायण द्वारा कमरे में बन्द कर देने एवं तप करने के आदेश के उपरान्त विभिन्न जगहों पर अपने भक्तों को दर्शन देते थे।
4. एक ही दिन में काशी, पुष्कर, प्रयाग की यात्रा कर आते एवं सभी जगह साक्षात दर्शन देते।
5. गुरु कृपा से आश्रम में बने 5 व्यक्तियों के भोजन से 500 व्यक्ति तृप्त हो जाते थे।
6. श्री तख्तसिंह जी के सामने नदी की रेत उछाली तो वह सुगंधित गुलाल बन गई, बावड़ी में से स्वर्णपात्र में जल ले आये।
7. लुण्डावास मार्ग पर प्रेत से मल्लयुद्ध कर उसे मोक्ष दिया।
8. एक पैर से हीन मृत ऊँट को जीवित कर तीन पैरों पर दौड़ाया।
9. एक अघोरी ने हाथी बनकर हमला किया तो गुरुदेव ने शेर रुप धारणकर उसे मार डाला।
10. अंतिम वेला में पुष्कर, काशी, जोधपुर, रतलाम आदि में एक साथ दर्शन दिये।
००० संत विभूतिया ँ ०००
1. श्री नारायण जी :- आज से दो सौ वर्ष पूर्व बड़ाबास, सोजत नगर के श्री नारा द्विवेदी (माहुड़ा) ने नदी किनारे स्थित भूमि को पवित्र मानकर तपस्या की थी। वैराग्य से परिपूर्ण श्री नारायण ने कार्तिक शुक्ला 10 वि. सं. 1851 को सन्यास ग्रहण किया एवं कुटिया बनाकर उसे नारायण आश्रम नाम दिया। उनके तप एवं तेज से प्रेरित श्री जोधपुर महाराज ने उन्हें आश्रम हेतू 38 बीघा 11 बिस्वा जमीन दान में दी। वर्तमान फूलनारायण आश्रम वस्तुत श्री नारायण स्वामी द्वारा ही स्थापित किया गया है। स्वामी नारायण ने 1897 वि. सं. में समाधि ली।
2.जमनाबाई जी :- श्री गुरु फूलनारायण जी के आध्यात्मिक तप-ज्ञान से प्रेरित होकर किशनगढ़ निवासी पं. बछराज जी व्यास की सुपुत्री जमनाबाई वि. सं. 1898 में उनका शिष्यत्व ग्रहण करने आ गई। यद्यपि उनका विवाह जोधपुर निवासी पं. काशीराम जोशी के साथ हुआ किंतु बाल्यकाल में ही विधवा होने के बाद उन्होंने वैराग्य का मार्ग चुना एवं गुरुदेव की शरण में आ गई। श्री गुरुदेव के समाधिस्थ होने पर जमनाबाई जी ने महाभोज किया एवं करीब पन्द्रह वर्षों तक आश्रम में रहते हुए उसका कुशल संचालन किया। इस लम्बे भक्तिपूर्ण एवं वैराग्य जीवन को भोगकर वैशाख कृष्णा 5 वि. सं. 1934 को वे यहीं ब्रह्मलोक सिधार गई।
3. श्री मुकननारायणजी :- गुरुफूलनारायण जी के बाद उनके गादीधारी श्री मुकननारायण जी हुए। जो जोधपुर के चूना चौकी निवासी श्री कृष्णराम त्रिवेदी के पुत्र थे। श्री गुरु फूल नारायण जी के आश्रम में वे अनन्य श्रद्धा रखते हुए आते-जाते रहते थे। ये कहा जाता है कि गुरुदेव द्वारा स्वप्न में शिष्यत्व ग्रहण करने का आदेश देकर उन्हें भेजा गया तथा आषाढ़ शुक्ला 15 (गुरु पूर्णिमा) वि.सं. 1936 को गुरुदेव की गादी स्वीकार की। उन्हें मुकनलाल से मुकननारायण नाम मिला। उन्होंने शंकरबाग में मुकन बावड़ी का निर्माण करवाया। वे भी इसी आश्रम में आषाढ़ पूर्णिमा 1963 को समाधिस्थ हुए।
4.श्री ब्रह्मनारायण जी :- मार्गशीर्ष शुक्ला वि. सं. 1939 को जोधपुर निवासी पं देवीदान जी अवस्थी के घर जन्मे लादूराम, श्री ब्रह्मानारायण नाम से चौथे गादीधारी बने। पैतृक व्यवसाय से कलकत्ता में रहते हुए भी वे वैराग्य में रमे रहे एवं शीघ्र ही गुरुफूल की प्रेरणा से विरक्त हो गये। स्वामी नित्यानन्द से कार्तिक शुक्ला 15 वि. सं. 1964 में सन्यास दीक्षा ली। इन्होंने अपनी विद्वता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के बल से आश्रम की जमीन पुनः 5 मई 1923 ई. को अपने नाम करवाई एवं दान चन्दे आदि से समस्त आश्रम का जीर्णोद्वार करवाया। आश्रम में शंकराचार्य की मूर्ति स्थापित की एवं महादेव का मंदिर बनाया। परिसर के भीतर ही कमरे, रसोई एवं शौचालय आदि बनवाए। सुरेश्वर महादेव में भी कमरे का निर्माण करवाया। स्वामी जी की ही प्रेरणा से पुष्करणा व्यास छैलाराम जी ने सोजत के जोधपुरिया दरवाजा स्थित बगीची 25 जन. 1925 को भेंट की एवं इसकी रजिस्ट्री (पट्टा नं. 6/31-32 मिसल 11/27-28) 16 जुलाई 1930 को की। स्वामीजी ने यहां एक निःशुल्क औषधालय एवं आश्रम में समृद्ध पुस्तकालय की भी स्थापना की। इनके प्रभाव का विस्तार सोजत से बाहर आगे भी बढ़ता रहा। रतलाम, पुष्कर एवं जोधपुर में म स्थापना करने से लेकर काशी, हैद्राबाद व कलकत्ता में भी अपना रंग जमाया। व सम्पूर्ण भारतवर्ष में घूमें एवं श्रीमालियों को उनके सांस्कृतिक गौरव का स्मरण करवाकर साठ वर्ष की आयु में भाद्रपद कृष्णा 4 वि. सं. 1999 को स्वर्गस्थ हो गए।
। सुरेश्वर महादेव मन्दिर - अस्तित्व पर संकट ? जय शंकर - राजेन्द्र लक्ष्मीनारायण जोशी गुरुकृपा ही केवलम् श्री सुरेश्वर महादेव मन्दिर पूर्वतः श्री फूलनारायण जी के हाथो स्थापित मंदिर है। जोधपुर नरेश श्री तख्तसिंह जी द्वारा गुरुदेव को सवा छः बीघा जमीन (खसरा 1 जमाबंदी 1311) दी गई। जिस पर उन्होंने वि.स. 1914 में शिवलिंग एवं नंदीकेश्वर स्थापित कर मंदिर रुप दिया। किंतु गुरुदेव इस स्थान पर तपस्या करने बहुत पहले वि. सं. 1865-66 के आस-पास आ गाए थे। तपस्यारत रहते हुए वि.स. 1892 में कुँआ एवं वि.स. 1903 में दो कमरों की धर्मशाला स्थापित की। गुरुदेव की तपोभूमि सुरेश्वर महादेव मन्दिर चमत्कारिक एवं आध्यात्मिक आस्था का केन्द्र है जहां अनेकों की इच्छाएं पूर्ण हुई किंतु यह मंदिर आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। यद्यपि कई श्रीमाली भक्तगणों ने एवं विजातिय भक्तों ने भी मंदिर की सुरक्षा, देखभाल एवं जीर्णोद्धार के कार्य किये किंतु यहां कई बार चोरियां हो चुकी है। कई व्यक्ति अब मंदिर के मठाधीश बनने के चक्कर में है। नाम तक बदलने की कोशिश हो चुकी है। आस-पड़ोस के अतिक्रमणकारी मंदिर की भूमि पर नजर गड़ाए यदा-कदा थोड़ी थोड़ी भूमि हड़पने में लगे रहते है। पूर्व में तो पूरा सुरेश्वर मंदिर मय खेती जमीन कुछ दुष्टों ने हस्तस्थ कर लिया था लेकिन समाज के शुभचिंतकों ने उचित समय पर कार्यवाही करके गुरुदेव के तपस्थल को बचा लिया। आज वही मंदिर फिर से उसी जागृति की बाट जोह रहा है ताकि भू-माफिया एवं स्वार्थी तत्वों से उसे बचाया जा सके। आप सभी श्रीपुत्रों से निवेदन है कि आश्रम में आयोज्य 4 दिवसीय समारोह में से एक दिन तेरस (प्रदोष) को सुरेश्वर महादेव के प्रांगण में उत्सव हो ताकि यह स्थान भी भक्तगणों की आस्था एवं उपस्थिति से न केवल सुरक्षित बल्कि विकसित भी हो। युवा मण्डल यहां पर एक हॉल, रसोई, स्नानघर एवं शौचालय के निर्माण में प्रयत्नशील है, आप भी अपना योगदान प्रदान करे। Shriguru1008 (talk) 15:39, 3 July 2024 (UTC)
- Hindi-language content is not acceptable for the English-language Wikipedia. Try editing hi.wp instead. —Jéské Couriano v^_^v threads critiques 17:33, 3 July 2024 (UTC)