User talk:Kamlesh Manchanda
माधवी – पौराणिक कथा
यह कथा पौराणिक काल के दौरान चंद्र वंश में जन्मे राजा ययाति की बेटी माधवी की है. माधवी अत्यंत खूबसूरत, शालीन, आकर्षक एवं सर्वगुण सम्पन्न थी. जिसके लिए उसका अपना वरदान ही अभिशाप बन गया. एक अनमोल वरदान, कभी न भंग होने वाले कौमार्य का वरदान. ऐसा अभिशाप, जिसे साकार रूप देने के लिए कोई और नहीं, बल्कि उसके पिता ही जिम्मेदार थे. ऋषि गालव गुरु विश्वामित्र के प्रिय शिष्य थे. जब उनका अध्ययन पूर्ण हुआ तो नियमानुसार ऋषि गालव को गुरु से दीक्षा लेकर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश लेने की अनुमति का अवसर प्राप्त हुआ. तभी ऋषि गालव ने सोचा कि यही समय है अपने गुरु के प्रति अपनी गुरुभक्ति और अपार श्रद्धा व्यक्त करने का. लेकिन विश्वामित्र गालव की स्थिति को जानते थे. उन्होंने उसे बहुत समझाया. गुरु के बार बार समझाने के बावजूद गालव ने कहा, “मेरा अध्ययन तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक कि मैं अपनी पूर्ण शक्ति के अनुसार आपको गुरु दक्षिणा न दे दूँ.” ऐसा सुनकर गुरु विश्वामित्र विचलित हो उठे और उनका धैर्य समाप्त हो चुका था. उन्होंने कहा, “तुम्हें गुरुदक्षिणा के लिए 800 श्याम कर्ण वाले अश्व देने होंगे. जोकि चंद्रमा की भांति श्वेत वर्ण वाले हों.” ऋषि गालव की पक्षीराज गरुड़ के साथ गहरी मित्रता थी. गरुड़ पर बैठकर सम्पूर्ण भूमंडल की परिक्रमा करने के बावजूद ऋषि गालव को वैसे अश्व नहीं मिले. तब गरुड़ ने गालव को राजा ययाति की शरण में जाने की सलाह दी. राजा ययाति का धरती के राजाओं में अत्यधिक सम्मान था. जब राजा ययाति को ऋषि गालव और गरुड़ के आने की सूचना मिली तो वह उनका स्वागत करने के लिए द्वार पर पहुंचे. गरुड़ ने राजा को पूरी बात बताते हुए ऋषि गालव की मदद करने को कहा. राजा ययाति अपने मित्र गरुड़ की बात सुनकर प्रसन्न हुए लेकिन वे सोच में पड़ गए क्योंकि उनकी स्थिति अब वैसी नहीं थी, जैसी गरुड़ सोच रहे थे. अनेक राजसी व्ययों और यज्ञों में उनका कोष खाली हो चुका था. तब राजा ने अपनी इकलौती बेटी माधवी को समर्पित करते हुए कहा कि मेरी बेटी दिव्य गुणों से अलंकृत है. मेरी बेटी को लेकर आप अन्य राजाओं के पास जाइए. ऐसी सुन्दर अप्सरा जैसी स्त्री के आगे राजा अपना पूरा राज लुटा देंगे. परंतु मेरी एक प्रार्थना है कि आप 800 अश्व पूर्ण होते ही मेरी बेटी मुझे लौटा दें. गालव और गरुड़ माधवी को लेकर सबसे पहले अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास गए. राजा हर्यश्व ने कहा, “मेरे पास तो 200 अश्व ही हैं और मैं उन्हें देने को तैयार हूँ लेकिन मैं माधवी से एक पुत्र चाहता हूँ.” तो माधवी को एक साल के लिए वहीं छोड़ दिया गया. एक साल के बाद राजा हर्यश्व ने उन्हें 200 अश्व दे दिए. इस प्रकार राजा काशीराज, राजा देवोदास और भोजराज उशीनर के पास गए, तो उन्होंने भी माधवी से एक एक संतान की इच्छा जताई. इस तरह तीन साल बीत गए और केवल 600 अश्व ही मिले. अब पूरी धरती पर ऐसा एक भी अश्व नहीं था और गुरु विश्वामित्र को दी गई अवधि भी समाप्त होने को थी. अब गरुड़ और गालव माधवी को लेकर गुरु विश्वामित्र के पास पहुंचे और उन्हें 600 श्याम कर्ण अश्व देते हुए कहा, “गुरुदेव आप इन्हें स्वीकार करें और शेष 200 अश्वों के शुल्क के स्थान पर माधवी को स्वीकार करें.” गुरु विश्वामित्र मान गए और उन्हें भी माधवी से एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जो अष्टक के नाम से प्रसिद्ध हुआ. तत्पश्चात ऋषि गालव ने माधवी को लेकर राजा ययाति को वापिस लौटा दिया. यह कथा अपने आप में इस बात का उदाहरण है कि नारी की स्थिति उस युग में भी कितनी दयनीय थी. अगर एक राजा की इकलौती बेटी की अवस्था ऐसी थी, अर्थात एक राजा की बेटी को ऐसी परिस्थितियों से गुजरना पड़ा, तो एक निम्न वर्ग की नारी के जीवन की तो कल्पना भी क्या की जा सकती है.
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