User talk:Chubhan.today
साहित्यिक एवं सामयिक विषयों पर रोचक जानकारी
[edit]हमने अपनी धरोहरों और पौराणिक ग्रंथों को पुराना मानकर उनसे कुछ सीखने के स्थान पर उन्हें बिल्कुल छोड़ दिया, जिससे कितने ज्ञान और नवीन जानकारियों से हम वंचित हो गए। साहित्य, कला, संगीत, पौराणिक ग्रंथ और हमारा इतिहास, यह सभी उस खजाने की तरह हैं, जिनसे हमें अपरिमित ज्ञानार्जन होता है, बस ज़रूरत एक दृष्टि की है। मैं ऐसे ही नवीन विषयों पर जानकारी देती रहूंगी।
अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय
[edit]"सिर नीचा कर किसकी सत्ता,सब करते स्वीकार यहां। सदा मौन हो प्रवचन करते, जिसका वह अस्तित्व कहां ?"
- जयशंकर प्रसाद
इस चराचर विश्व का नियमन करने वाली उस 'अज्ञात', 'अव्यक्त' परम सत्ता की खोज मानव-मन चिरकाल से करता आया है।उसे उस अज्ञात सत्ता का आभास तो हुआ, परंतु वह निश्चित रूप से यह नहीं जान सका कि वह कौन है? उसका स्वरूप क्या है? अपने इस अज्ञान से संकुचित और उस सत्ता के आभास से आश्चर्य चकित हो वह जिज्ञासा के स्वर में पुकार उठा-
"हे अनंत रमणीय? कौन तुम? यह मैं कैसे कह सकता। कैसे हो? क्या हो? इसका तो, भार विचार न सह सकता।।"
मानव ने सृष्टि के आदि से अब तक जिस वस्तु की आकांक्षा की है, उसे प्राप्त करके रहा है, परंतु उसकी शक्ति 'ब्रह्म' के समीप आकर कुंठित हो उठी है-
"पाना अलभ्य जग की यह कैसी अभिलाषा। है ब्रह्म अप्राप्य इसी से सब करते उसकी आशा।।"
इसी अप्राप्य ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए मानव-हृदय और मानव-मन चिंतन करता आया है लेकिन फिर भी यह अप्राप्य ब्रह्म आज तक हम सब के लिए रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य को जानने का मन हम सभी का होता है इसीलिए आज हमने चुभन पर एक ऐसे व्यक्तित्व को आमंत्रित किया है, जिन्होंने शास्त्रों की विज्ञान के द्वारा व्याख्या की है और किसी भी धर्म का उल्लेख न करते हुए सिर्फ उसका संदर्भ देते हुए उन बातों को विज्ञान द्वारा सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है।आप हैं डॉ. सी.के. भारद्वाज जी ,जो पिछले 27 वर्षों से इसी कार्य में लगे हुए हैं। डॉ. भारद्वाज जी ने प्राइमरी, सैकंडरी और उच्च शिक्षा के विकास और उन बातों के क्रियान्वयन के लिए अनुसंधान कार्य किये तथा यूनेस्को और विभिन्न शिक्षा बोर्ड जैसे CBSE, NCERT और AICTE के साथ मिलकर कार्य किया। आपने इस विषय को लिया कि फिलॉसफी के आधार पर हमारी साइकोलॉजी बनती है और साइकोलॉजी के आधार पर हमारा व्यवहार बनता है।अगर सबका व्यवहार अलग- अलग हो जाए तो गड़बड़ हो जाती है और आज के समय में यही तनाव हो रहा है।सबका एक दूसरे से टकराव है।सारी दुनिया लड़-मर रही है।किसी को भी पता ही नही कि धर्म क्या है? परमात्मा क्या है, हमारा शरीर कैसे बना, ब्रह्मांड कैसे बना, मन क्या होता है, आत्मा जो मृत्यु के समय शरीर छोड़ जाती है, वह क्या होती है? यह सारे प्रश्न हमारे लिए अनुत्तरित ही रहते हैं।ज्ञान का इतना बड़ा भंडार उपलब्ध है, फिर भी हमें नही पता। भारद्वाज जी बताते हैं कि विज्ञान ने छलांग लगाई है और देखा कि कुछ तो है जो परे की चीज़ है और अभी तो वह खोज शुरू हुई है।आपका कहना है कि एक शक्ति है जो सब कुछ चला रही है, जिसे हम ईश्वर कहते हैं, लेकिन वह क्या है?यही हमें जानना पड़ेगा।हम कौन हैं और हमारा उससे क्या संबंध है?इन बातों को आपने बहुत अच्छे से हमलोगों तक पहुंचाया है।आप कहते हैं कि जैसे हमारी उंगली हमारे शरीर का अंश है, उसी तरह हम उस ब्रह्मांड का अंश हैं।हमारे अंदर भी वही जीन है जो ब्रह्मांड में है।जो परमात्मा है ,वह हमारे अंदर आत्मा के रूप में विद्यमान है।हमारी आत्मा का बाहरी स्वरूप हमारा ध्यान है।ध्यान एक प्रकाश के कण के बराबर है, जो सभी दिशाओं में देख सकता है।उसमें कुछ भी कर देने की क्षमता है क्योंकि हर प्राणी यहां परमात्मा का ही प्रतिनिधित्व कर रहा है क्योंकि आत्मा सभी मे विराजमान है। इन बातों का हमारे शास्त्रों में भी प्रमाण है।सृष्टि के आरंभ की जो कथा हमारे शास्त्रों में वर्णित है, उसमे यही तो है।परमात्मा की इच्छा हुई कि वह एक से अनेक बने -
"एको अहं बहु स्याम्"
एक से अनेक होने पर इस सृष्टि का निर्माण हुआ, किंतु अनेक होने के बाद भी उसके एकत्व में कोई अंतर नहीं पड़ा।जैसे कोई बीज एक होता है, किंतु समय पाकर एक से अनेक हो जाता है।पहले अंकुर फूटता है, फिर तना, डालियां, पत्ते, फूल, फल और अंत में बीज रूप में वह अनेक हो जाता है, किंतु हर बीज उस पूर्व बीज के ही समान है।उसमें भी अनेक होने की पूरी संभावनाएं हैं।जैसे अंकुर, तना या डालियां ,फूल आदि सभी उस बीज में से ही निकले हैं पर वे बीज नही हैं इसी प्रकार ब्रह्म से ही जड़ जगत, वृक्ष, पशु, पक्षी आदि हुए हैं पर वे ब्रह्म के एकत्व का अनुभव नहीं कर सकते, केवल मानव को ही यह सामर्थ्य है कि वह फूल की तरह खिले, फिर उसमें भक्ति व ज्ञान के फल लगें और उसके भीतर ब्रह्म रूपी बीज का निर्माण हो सके। इन सारी बातों को भारद्वाज जी ने विज्ञान के द्वारा सिद्ध करने का प्रयास किया है और पिछले 27 सालों से अनवरत इस कार्य में संलग्न हैं।उनके साथ हुई सारी बातों को सुनने के लिए चुभन के पॉडकास्ट पर जाएं। Chubhan.today (talk) 17:25, 12 April 2021 (UTC)
मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी की पुस्तक "Invisible shades of Ramayana" पर उनके विचार
[edit]मेजर जनरल ए.के.शोरी जी की पुस्तक ‘Invisible Shades Of Ramayana’ पर एक संवाद(भाग 1)
सेना के उच्च पद पर रहे व्यक्तित्व द्वारा वाल्मीकि रामायण पर उनके ही विचार हम सब के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
“कौन सी बात कहां,कैसे कही जाती है। यह सलीका हो तो ,हर बात सुनी जाती है।”
प्रसिद्ध शायर वसीम बरेलवी जी ने इस शेर में जो बात कहनी चाही है, वह हम सभी पर कभी न कभी सटीक बैठती है, क्योंकि हममें से अधिकांश लोगों की यह समस्या होती है कि हम तो अपनी बात कहते हैं पर कोई उसे ध्यान से सुनता ही नही परंतु कुछ ऐसे लोग होते हैं,जिनके पास यह हुनर होता है कि अपनी बात कहां और कैसे कहनी है?ताकि ज़्यादा से ज़्यादा उनकी बात सुनी जाए और ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैं मेजर जनरल अमिल कुमार शोरी जी,जिन्हें आप पहले भी चुभन के ब्लॉग और पॉडकास्ट पर पढ़ और सुन चुके हैं। आज हम शोरी जी के लेखक रूप की चर्चा करेंगे और उनकी प्रकाशित चार पुस्तकों में से एक “Invisible shades of Ramayana” ,जोकि वाल्मीकि रामायण पर आधारित है, पर जनरल साहब के ही विचार जानेंगे। इस पुस्तक में आपने वाल्मीकि रामायण के 20 चरित्रों को लिया है और उन चरित्रों के उस रूप को हमारे सामने लाने का सफल प्रयास किया है, जिनसे हम अभी तक अपरिचित ही रहे हैं क्योंकि ज़्यादातर हमारी एक परंपरावादी दृष्टि होती है, जिसमें पीढ़ियों से जो बातें चली आ रही हैं, उन्हें ही मानते हुए हम चलते चले जाते हैं और इतने महान ग्रंथ,जिसकी बातें यदि अमल में लाई जाएं तो एक नए युग का निर्माण हो सकता है, लेकिन हमारी दकियानूसी सोच के चलते कुछ भी नही हो पाता। आपकी पुस्तक का शीर्षक “Invisible shades of Ramayana” बिल्कुल सटीक है।इसमें आपने वास्तव में वाल्मीकि रामायण के कथानक के उन अदृश्य रंगों को अपनी लेखनी से एक नया रूप दिया है, जो शायद हममें से बहुत से लोगों के लिए अदृश्य ही रह जाते।
दोस्तों इसी विषय पर मेजर जनरल शोरी जी ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।उनके लेख को प्रकाशित कर रही हूं-
लेखक-मेजर जनरल ए.के. शोरी जी-
रामायण विश्व में सबसे अधिक प्रचलित,आदरणीय और पवित्र ग्रंथों में है।यद्यपि रामायण लिखने वाले अनेकों हैं, लेकिन इसके प्रथम जनक महर्षि वाल्मीकि हैं। निसंदेह गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ अधिक प्रचलित और प्रसिद्ध है और ‘रामचरित मानस’ को पढ़ने व जाननेवालों की संख्या ‘वाल्मीकि रामायण’ से अधिक है, क्योंकि इस की भाषा की सरलता जन-मानस को अपने साथ जोड़ कर रखती है।वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के मुकाबले रामचरित मानस संक्षिप्त भी है परन्तु अगर विस्तृत विवरण, भाषा की उच्चता और ख़ूबसूरती, सभी घटनाओं को पिरो कर दर्शाना और आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन का समावेश करना, इन सब को देखा जाय तो ‘वाल्मीकि रामायण’ कोसों आगे है. देखा गया है कि भारतवर्ष में शायद ही कोई ऐसा हिन्दू घर होगा जहाँ रामायण न हो। लेकिन सिर्फ रामायण घर में होने से ज़िम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती जब तक उस का अध्ययन न किया जाय और वो भी पूरी श्रध्दा और नियम के साथ।वाल्मीकि रामायण के बारे में बहुधा लोगों का ज्ञान काफी हद तक सीमित है। दरअसल रामायण के बारे में हमें उतना ही मालूम है जो फिल्मों, टेलीविज़न या रामलीला में दिखाया गया है, जो कि बहुत सीमित, ग्लैमर से भरा हुआ व भावनाओं से ओत प्रोत रहा है। ‘वाल्मीकि रामायण’ एक ऐसा महा ग्रन्थ है, जिस का अनेकों बार अध्ययन करने के बाद ही उसकी महानता का पता चलता है। यह एक ऐसा महाकाव्य है,जो हजारों साल बाद भी आज की बदलती परिस्तिथियो में पूरी तरह से सार्थक है। इसे एक नहीं बल्कि अनेकों बार पढ़ने से ही इसमें छिपी दार्शनिकता के बारे में समझ आती है। दरअसल वाल्मीकि रचित रामायण सिर्फ एक कहानी नहीं है।इसकी वृहत विषयों की महानता और उच्च दर्श्नावली को देखा जाये तो रामायण राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी के लिए प्रजातांत्रिक व्यवस्था, मंत्रिपरिषद की कार्य प्रणाली, शासन प्रबंधन एंव कूटनीति पर एक शोधग्रन्थ है।अगर इसे समाज शास्त्री के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह मानवीय संबंधों, परिवारिक व सामाजिक रिश्ते नातों की एक महान गाथा है।मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो रामायण प्यार, स्नेह, निस्वार्थ सेवा में गुंथे हुए फूलों की एक माला है। दार्शनिक कोण से अगर हम रामायण को जानने की कोशिश करें तो इसमें अध्यात्मिकता का भरपूर रस मिलता है।वास्तव में, रामायण ऐसे इन्द्रधनुष की तरह है, जिसके रंग जितने दिखाई देते हैं, उससे ज्यादा इसमें निहित हैं व जिन्हें आँखों से देखा नहीं बल्कि आत्मा से महसूस किया जा सकता है।जितने भी सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, मनोवैज्ञानिक विषय हमें हमारे जीवन में विचलित करते हैं, उन सब को महसूस करने और उनसे प्रेरणा ले कर जीने के लिए है रामायण। आज टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अपनी जगह इस तरह से जमा ली है कि हम एक तरह से उसके गुलाम बनते जा रहे है। फेसबुक नें हमें अदृश्य दोस्तों के साथ ज्यादा समीप और अपने साथ रहनेवालों से दूर कर दिया है और लोग क्या कर रहे हैं और हम जो कर रहे हैं उसके बारे में लोग जानते है कि नहीं, इसी गोरखधंधे में फंसते जा रहे हैं। 3 जी व 4 जी से हमारा मन शांत नहीं हो रहा है जबकि हमारे पांव के नीचे से हमारी अपनी दुनिया, परिवार, मित्र, खिसक कर दूर अति दूर होते जा रहे हैं। कुछ भी व कैसे भी पा लेना हमें नैतिक मूल्यों से विमुख करता जा रहा है। ऐसे में मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि रामायण जैसे महाग्रंथ क्या रेशमी कपड़े में लपेट कर अगरबत्ती दिखाने के लिए हैं? रामायण में श्रीराम के साथ-साथ दूसरे अन्य पात्रों को भी जानने व समझने की आवश्यकता है जो कि ज्ञान व बुद्धि का ऐसा भण्डार अपने में समेटे हुए हैं, जिस की जानकारी हमें बहुत कम है।इन पात्रों में राजा दशरथ, कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी, सीता, भरत, लक्ष्मण के इलावा मुनि वशिष्ठ, सुमंत, जटायु और जाबली है। दूसरी ओर रावण, कुम्भकरण, सूपर्णखा, मरीचि, माल्यवान, विभीषण तथा बाली, हनुमान व सुग्रीव हैं। हम सुनते आये हैं कि रावण बहुत ज्ञानी व विद्वान् था, लेकिन उसके ज्ञान के बारे में हमें बहुत कम मालूम है।राजा दशरथ का राज्य कैसा था, उनका प्रशासन कैसा था, इन सब के बारे में हमें जानकारी बहुत कम है।हनुमान को हम एक शक्तिशाली, बलशाली वानर के रूप में तो जानते है, लेकिन उनके ज्ञान, कूटनीति, संवाद कुशलता के बारे में कुछ नहीं मालूम।सक्षेप में, रामायण के पात्रों को माध्यम बना कर रामायण में निहित रंगों को जानना व समझना अति आवश्यक है, तभी हम इस महान ग्रन्थ से परिचित हो सकते हैं।