User:Vishnu7389
औरतो ने बदली दुनिया
पिछले अध्याय में हमने देखा कि महिलाओं द्वारा किया जाने वाला घर का काम काम ही नहीं माना जाता है तथा इसका कोई निश्चित समय भी नहीं है इस अध्याय में घर के बाहर के कामों को देखेंगे और समझेंगे कि कैसे कुछ व्यवसाय महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों के लिए अधिक उपयुक्त समझे जाते हैं और इस अध्याय में महिला आंदोलनों को भी जानेंगे
व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाएं आप देख सकते हैं कि अधिकतर लोग महिलाओं को केवल नर्स के रूप में देखते हैं तथा पुरुषों को पायलट पुलिस के रूप में देखते हैं ऐसा माना जाता है कि महिलाएं अच्छी नर्स हो सकती हैं क्योंकि वे अधिक सहनशील विनम्र होती हैं इसे महिलाओं की भूमिका के साथ मिलाकर देखा जाता है
और ज्यादातर यह माना जाताहै कि विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में महिलाएं सक्षम नहीं होती। अनेक लोग इस प्रकार की रूढ़िवादी धारणाओं में विश्वास करते
परिवेश : हमारे चारों और परिवेश कुछ इस प्रकार से बना हुआ है कि लड़कों को ऐसी नौकरियों के लिए प्रेरित किया जाता है जिसमें अधिक वेतन मिल सके ऐसा ना होने पर उन्हें चिढ़ाया जाता है
परिवर्तन के लिए सीखना आज अधिकांश बच्चे स्कूल जाते हैं परंतु अतीत में ऐसा नहीं होता था केवल कुछ
एक लोग ही पढ़े लिखे थे तथा अधिकांश लोग अपने घर के व्यवसाय को ही अपना लेते थे या बुजुर्ग लोग जो कार्य करते हैं उसे ही सीख लेते थे और अपनी आजीविका चलाते थे घर परिवार में लड़कियों की स्थिति और भी खराब थी वह घर का सारा कार्य करती तथा व्यवसाय में सहयोग भी करती थी उदाहरण के लिए कुम्हार के व्यवसाय में स्त्रियां मिट्टी एकत्र करती थी और बर्तन बनाने के लिए उसे तैयार करती थी
19 वीं शताब्दी में परिवर्तन शिक्षा के बारे में कई नई विचार ने जन्म लिया विद्यालय अधिक प्रचलन में आ गए।
राससुंदरी देवी (1800-1890)- यह पश्चिम बंगाल में पैदा हुई 60 वर्ष की अवस्था में उन्होंने बांग्ला भाषा में अपनी आत्मकथा लिखी "आमार जीबोन" यह किसी भी भारतीय महिला द्वारा लिखी पहली आत्मकथा थी राससुंदरी देवी एक धनवान जमीदार परिवार की ग्रहणी होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा ग्रहण की।
वर्तमान समय में शिक्षा और विद्यालय भारत में हर 10 वर्ष पश्चात जनगणना होती है जिसमें विभिन्न आंकड़े सामने आते हैं 1961 की जनगणना में पुरुषों का 40% शिक्षित था इसकी तुलना में स्त्रियों 15% भाग पढ़ा लिखा
2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों का 82% शिक्षित था तथा स्त्रियों 65% भाग पढ़ा लिखा था।
सब लड़कियों की श्रेणी की तुलना में अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) की लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर अधिक है
दलित आदिवासी और मुस्लिम बच्चों के स्कूल छोड़ने के अनेक कारण है
स्कूल पास न होना, शिक्षक का न होना
रूढ़िवादी सोच