User:NirdeshGautam
मैं और मेरा देश
14 अप्रैल की शाम, मैं बांदा शहर में था। मैं मुख्य चौराहा की ओर जा ही रहा था कि मेरे सामने से एक झुंड निकला, इस झुंड में लगभग 20 से 25 नौजवान थे। वह मोटरसाइकिल पर सवार थे। एक मोटरसाइकिल पर दो से तीन युवक थे, उनकी मोटरसाइकिल ज्यादा खास नहीं थी, सामान्य सी और पुरानी थी। उनके कपड़े भी खास नहीं थे सामान्य से और पुराने तथा गंदे और कहीं-कहीं से फटे हुए थे। जो यह साफ-साफ बता रहे थे कि वे युवक कोई अच्छे या अमीर घर से नहीं बल्कि मजदूरी, गलियों में झाडू लगाने वाले, कबाड़ बीनने वाले आदि काम करने वाले घरों से थे। एवं वे भी निश्चित रूप से यही सब काम करते होंगे । उनमें से कुछ के हाथों में नीले रंग का झंडा था जिसके बीचो-बीच अशोक चक्र बना हुआ था। मोटरसाइकिल पर सवार सबसे पीछे वाला युवक झंडे को पड़कर मोटरसाइकिल पर खड़ा था, बीच वाला पीछे वाले की टांगे पकड़कर उसे गिरने से बचा रहा था और आगे वाला मोटरसाइकिल चला रहा था। वह झुंड 'जय भीम' और 'बाबा साहेब अमर रहे' जैसे नारों को लग रहा था। पीछे सवार झंडा पकड़े नौजवान नारा लगाता और बाकी सब उसे सपोर्ट करते हुए नारा लगाते । उन्होंने मुख्य चौराहे पर आकर जोर-जोर से तकरीबन 5 मिनट तक नारे लगाए। ऐसे ही वे आगे बढ़ते, कुछ दूरी पर रुकते, नारे लगाते, फिर आगे बढ़ते, ऐसा करते हुए दिखाई दे रहे थे। आसपास के लोग उन्हें अचम्भे से देख रहे थे कि आखिर यह कौन लोग हैं? जिनके पास एक नीला झंडा और गले में नीला पट्टा है जो उनके कपड़ों से भी महंगा है। काफी आश्चर्य की बात तो थी ही, क्योंकि उस झंडे की कीमत उनकी दिनभर की कमाई से भी ज्यादा थी। वह काफी खुश लग रहे थे, शायद इतने खुश तो अपनी मजदूरी बढ़ाने पर भी नहीं होते होंगे। वे कोई मजदूर या कोई छोटा- मोटा काम करने वाले लोग ही थे। परंतु उन्हें किसी का डर, न हीं ऊंची जाति-नीची जाति का डर और ना ही
पुलिस या सरकार का डर। वह नारे लगाते और प्रदर्शन करते हुए 'अंबेडकर पार्क' तक पहुंचे। मैं भी उनका पीछा करते अंबेडकर पार्क में पहुंच गया। उन लोगों ने पार्क में लगी अंबेडकर की मूर्ति पर माला चढ़ाया। यह सब मैं देख ही रहा था और यह विचार भी कर रहा था कि इन सब दबे-कुचले लोगों को कोई नहीं पूछता ! तो फिर अंबेडकर ने ऐसा क्या कर दिया जो यह लोग अंबेडकर के प्रति इतना समर्पित है। वैसे तो भारत देश महान लोगों की धरती रहा है परंतु इन लोगों को इंसानियत का दर्जा और अधिकार दिलाने का काम डॉक्टर अंबेडकर ने ही किया है और शायद इसीलिए गरीबों, मजदूरों का झुकाव समर्पण डॉक्टर अंबेडकर के प्रति ज्यादा है। मैं यह सब विचार कर ही रहा था कि मुझे एक सामने से महिला आती दिखी जो की पंचशील की पट्टी वाली सफेद साड़ी पहनी थी, उसकी उम्र तकरीबन 50 साल के आसपास थी। वह भी काफी खुश नजर आ रही थी शायद उसे पता चल गया था कि उसे और उसके जैसी करोड़ों महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान जैसे तोहफे डॉक्टर अंबेडकर ने ही दिए थे। यह सब सोचते-सोचते मैंने मुख्य बाजार की ओर रुख किया। मुख्य बाजार यहां से लगभग 1 किलोमीटर दूर था, मैं पैदल ही चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद मुझे एक मोटरसाइकिल साज्जो-सजा की दुकान दिखी। यहां पर रंग-बिरंगे 3D चित्र या लेख मोटरसाइकिल पर लगाए जाते थे। इस दुकान के बाहर ही एक मोटरसाइकिल खड़ी थी, जिसके पीछे लगभग 6 फीट ऊंचा नीला झंडा बन्धा था। वह हवा में लहरता तो किसी उड़ते नीले पंछी जैसी छवि छोड़ता। यह दृश्य काफी रोमांचक था। उस गाड़ी के मालिक दो नौजवान थे। वह दुकान वाले से कुछ छपवाने की बात कर रहे थे। एक काफी दुबला व्यक्ति था, उसका मुंह गुटके से लाल नजर आ रहा था, उसके पुराने और ख़राब कपड़े उसकी हैसियत बयां कर रहे थे। वह और उसका साथी युवक दुकान वाले से शायद गाड़ी पर 'जय भीम' लिखवाने की बात कर रहे थे। यह काफी महंगा उनके लिए पड़ सकता था परंतु उन्हें बिल्कुल परवाह नहीं थी। आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर व्यक्ति इतने निडर है तो फिर पैसा और शिक्षा जैसे हथियारों से अनुग्रहित लोगों को किस चीज का डर है?
निर्देश गौतम लेखक और प्रकाशक