User:Navneet.Malpani
वायु पुराण:
अल्पाक्षरं असंदिग्धं सारवत् विश्वतोमुखम्।
अस्तोभं अनवद्यं च सूत्रं सूत्र विदो विदुः॥
कम अक्षरों वाला, संदेहरहित, सारस्वरूप, निरन्तरता लिये हुए तथा त्रुटिहीन (कथन) को सूत्रविद सूत्र कहते हैं।
वेदोके अध्ययन करनेवाली शाखाये जींन्हे ‘वेदांग’ कहते उनमे सुत्र का विषेष महत्व है।
वेदांग की कुल ६ शाखाए प्रसिद्ध है. ये शाखाए है
- शिक्षा
- कल्प
- व्याकरण
- निरूक्त
- छन्दशास्त्र
- ज्योतिष।
उपरोक्त हर शाखाए अपनी वीषेेताओ के अनुुुसार वेेदोका अध्ययन करती है।
इन्ही वर्गो के पाठ्य ग्रन्थों के रूप में सूत्रों का निर्माण हुआ। हिन्दू जीवन के समस्त कर्म, क्रिया, संस्कृति, अनुष्ठानादि समझाने के एक मात्र अवलंब ये सूत्र ही हैं।सूत्र अर्थात सघन गद्य के रूप के कारण वेदोको स्मृती मे स्थापित करना सरल हो जाता है। हालांकि सूत्रों को वैदिक ग्रथों का अंग नहीं माना जाता, पर इनसे वैदिक साहित्य को समझने में सहायता मिलती है। सुत्र 'कल्प' शाखा के अंंतर्गत वर्गीक्रत होते है. (यह कल्प जैैन सांंप्रदाय के कल्प से भीन्न वीषय है. और ना ही इनका संबंंध सनातन धर्म के कालगणना वाले कल्प से संंबंंधीत है)
तताता
कल्प के चार वर्ग हैं:
4. शुल्व सुत्र
1.श्रौत सूत्र:- ऋगवेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं।
सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं।
शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं।
अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।
2.गृह्य सूत्र:- दूसरा गृहस्थों द्वारा उत्सवों तथा सामान्य यज्ञों से संबंध हैं। इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है।
ऋगवेद के सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्य सूत्र हैं।
सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्य सूत्र हैं।
शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्य सूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौत सूत्रकारों के ही नाम पर हैं।
अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।
3.धर्म सूत्र:- यह सूत्र आम जनता के कानूनों रहन-सहन तथा रीति रिवाजों से संबद्ध है। इसके अलावा आश्रम, भोज्याभोज्य, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। यह सूत्र मनु स्मृति का आधार है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं।
4.शुल्व सूत्र : शुल्व सुत्र मुख्यतः ज्यामिति से संबंधीत होते है। अग्दिवेदियों तथा यज्ञ क्षेत्र संबंधी निर्माण के माप के निर्देश हैं।