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User:Miss. Priyanka Chandan

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पार्किंसन रोग

पार्किंसन रोग एक बढ़ने वाला , अक्षमकरी , तंत्रिकाक्षय (न्यूरोडीजेनेरेटिव ) विकार है। इस बीमारी को पहली बार 1817 मे जेम्स पार्किंसन द्वारा एक न्यूरोजिकल सिंड्रोम के रूप में वर्णन किया गया था। यह सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम में गड़बड़ी से सम्बंधित बीमारी है। ये पेशिया समन्वय को प्रभावित करती है यह बीमारी 50-70 वर्ष की उम्र में होती हे यह बीमारी आनुवंशिक , पर्यावरणीय , और ज्यादा ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण हो सकती है। यह रोग सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम में एक विकार पैदा कर देता है जिसके कारण न्यूरॉन्स डोपामाइन नामक केमिकल को पर्याप्त मात्रा मे बनाने में असमर्थ हो जाते है डोपामाइन गति , समन्वयन ,मनोदशा ,व्यव्हार को नियंत्रित करता है और साथ ही सन्देश भेजने में अहम भूमिका निभाता है यह बीमारी समय के साथ बढ़ती जाती है डोपामाइन के पर्याप्त मात्रा में न बन पाने के कई कारण होते है वैज्ञानिको की माने तो TMEM230 नामक जीन में म्यूटेशन से इस बीमारी की शुरुवात होती है TMEM230 जीन उन प्रोटीन्स का निर्माण करता है जो की न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन के पॅकेजिन का कार्य करता है यह आनुवंशिक , पर्यावरणीय , और ज्यादा ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण हो सकती है

तंत्रिकाओं के नष्ट होने का कारण

शरीर की कोशिकाय चयापचय (मेटाबोलिज्म) की प्रक्रिया के दौरान विशेष प्रकार के विषैले केमिकल्स हमारे शरीर में उत्पन्न करती है ,इन्हे मुक्त कण या फ्री रेडिकल्स कहते है | ऐसा खास तोर पर उम्र बढ़ने के साथ और पर्यावरण में मौजूद विषैले तत्वों के संपर्क में आने से होता है, हमारे शरीर में उपस्थित एंटी - ऑक्सीडेंट इनको कुशलता से समाप्त कर देते है लेकिन इस बीमारी में इन फ्री रेडिकल्स और एंटी-ऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन हो जाता है और ये एंटी-ऑक्सीडेंट इन फ्री रेडिकल्स को कुशलता से समाप्त नहीं कर पाते है और ऑक्सीडेटिव तनाव की स्थिति बनती है, जिसके कारण तंत्रिकाओं का अपक्षय और मृत्यु होने लगती है परिणामस्वरूप न्यूरॉन्स सही तरह से सन्देश भेजने में असमर्थ हो जाते है इसी कारण डोपामाइन का उत्पादन करने वाले न्यूरॉन्स की संख्या घटती जाती है

बीमारी के लक्षण

  • इस बीमारी की वजह से शरीर में अकड़न आ जाती है कई बार तो शरीर को हिलना भी मुश्किल हो जाता है |
  • हाथ - पैर में कम्पन्न होने लगती है और शरीर के अन्य अंगो के काम करने की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है जिसे ब्रेडिकिनेसिया के नाम से जाना जाता है। हाथो में कम्पन्न के कारण लिखने में भी परेशानी होने लगती है।
  • कब्ज की शिकायत होने लगती है साथ ही मूत्र विसर्जन में भी दिक्कत होने लगती है।
  • व्यक्ति की आवाज में बदलाव होने के साथ जीभ लड़खड़ाने लगती है।
  • नींद में गड़बड़ी ,अवसाद ,चिंता ,डिमेंशिया आदि जैसे रोग बढ़ने लगते है।
  • खाने को चबाने और निगलने की क्षमता भी काम होने लगती है और मुँह से लार गिरने लगती है
  • प्रत्येक रोगी में इस बीमारी में अलग -अलग अनुभव होते है।

इस रोग का उपचार

  • डॉक्टर्स के मुताबित व्यायाम पार्किसन रोग को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है थोड़ी एक्सरसाइज़ , थेरेपी और सही काउंसलिंग की जाये तो काफी हद तक इस बीमारी को मत दी जा सकती है।
  • अच्छे न्यूरोसर्जन से संपर्क करे वह इस रोग के मरीज के लिए डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी का सुझाव देते है।

रोगी की देखभाल के लिए सुझाव -

  • इस बीमारी में पेशियों के समन्वय से की जाने वाली क्रियायें जैसे खाना , चबाना ,निगलना आदि नहीं कर पते है। इस लिए ऐसे में भोजन को छोटे निवाले के रूप में और अर्धठोस भोजन दिया जाना चाहिए ताकि इसे आसानी से चबाया जा सके।
  • ज्यादा कैलोरी वाला भोजन देना चाहिए इसके अलावा कब्ज की स्थिति में सूप और फाइबर युक्त भोजन की मात्रा बड़ा देना चाहिए।
  • गतिशीलता बनाये रखने के लिए और कब्ज से राहत पाने के लिए टहलने या फिजिओथेरेपी से शरीर को गतिशील रखने की कोशिश करे।

ऐसे रोगी को खाने में क्या दे -

  • बादाम - बादाम में ओमेगा 3 फेटिएसिड और फाइबर युक्त होता है।
  • ग्रीन टी - इसमें पोलिकानोल्स होता है जो की तंत्रिका की क्रियाओ को सुरक्षित रखता है और ऑक्सीटेडिटिव तनाव को काम करता हैं।
  • हल्दी - इसमें करक्यूमिन होता है जो की इस रोग में सुरक्षात्मक प्रभाव उत्पन्न करता हैं।
  • ओट्स- प्रचुर मात्रा में फाइबर प्रदान करता हैं,ताकि कब्ज से राहत मिले साथ ही कोलेस्ट्रॉल को मैंटेन रखता हैं।
  • टमाटर - एंटी-ऑक्सीडेंट ,लाइकोपीन का प्रमुख स्त्रोत है।
  • अनार - एंटी-ऑक्सीडेंट , विटामिन C , टेनिन युक्त होते हैं।
  • पपीता - एंटी-ऑक्सीडेंट , फाइबर युक्त होती है।

इस सभी के अलावा सबसे ज्यादा जरुरी उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करे, क्योकि इस स्थिति में रोगी को इलाज के अलावा परिवार के साथ की भी जरुरत होती हैं ,ताकि उन्हें इस रोग से लड़ने का हौसला मिलता रहे और घर के सदस्यों को भी उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए ओर उसके साथ आराम से पेश आना चाहिए क्योकि इस रोग के ठीक होने में रोगी को और परिवार के सदस्यों को बहुत धैर्य की आवश्यता होती हैं , रोगी को बाहर घुमाने ले जाये घर में अच्छा माहौल रखे और टाइम पर खाना और दवाइया दे।