User:Maithilbandhu
भारतवर्षमें एक अत्यन्त प्राचिन संस्कृति व सभ्यता सहित अखण्ड ऐतिहासिकता को समेटकर-सहेजकर रखनेवाली मिथिला, भारतीय गणतंत्र के स्थापना समय से राज्य का दर्जा न पाकर अब क्रमश: अपनी सारी विशेषताएँ खोती जा रही है। वर्तमान राज्य के पूर्वाग्रही, विरोधी भूमिका से लिपि, भाषा, साहित्य, संगीत, कला, महत्त्वपूर्ण परंपरायें, पर्यावरण से जुडी अनेकों व्यवस्थायें, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, रोजगार, सामरिक विकास आदि सारी बिशेषता एवं संभाबनाये क्रमश: दम तोडती जा रही हैं। जाति आधारित राजनीति से केवल और केवल समाज के विभिन्न वर्गों के मन में दूसरे के प्रति द्वेषभाव का प्रसार करते हुए जन मानस के ह्रदय और सामाजिक संरचना एवं माहौल को बिषाक्त बनाया जा रहा है।
प्रजातंत्र की अनमोल विशेषता, स्वायत्तता और समग्र विकास जिससे समानता और सामाजिक समरसता का संचार - प्रसार हो, वो दूर होते जा रहा है और अनैतिकता के बल पर वोट बैंक की कुटिल राजनीति हावी होती जा रही है जिसके परिणामतः मिथिला जैसी मूल्यवान् और गौरवशाली संस्कृति लगभग मृतप्राय हो गई है। १९१२ से बिहार में मिथिला को गैर जरुरी और बेतुके पूर्वाग्रह के आधार पर रखने के वजह ही ये समस्त ह्रासोन्मुखी स्थितियाँ उत्पन्न हुई है।
भाषाके आधारपर जब मिथिला बनना चाहिये था तब मिथिला की माँग को केवल उच्च-वर्गीय लोगों की माँग कहकर नकारना, फिर मिथिला की मांग को नजरंदाज करते हुए झारखंड बनाने के हिंसक माँग को मनना दुखद और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की एक भारी भूल है। मिथिला में सदा ही शान्तिपूर्ण और बौद्धिक स्तरों पर किये जा रहे माँगों की उपेक्षा एक दुखद और संबिधान बिरोधी अध्याय है।
बिहार में अन्य भाषाओं को राजनैतिक मान्यता वोट बैंक के खातिर दिया गया है पर भारतीय संविधान की अष्टम् अनुसूचीमें ससम्मान अपने साहित्यिक, वैयाकरणिक और हर तरह के विकसित स्वरूप से स्थान प्राप्त मैथिली के लिये सरकार में केवल उपेक्षा का सोच रहना तो अत्याचार की पराकाष्ठा प्रमाणित कर रही है। जहाँ दूसरे भाषाओं को प्रवर्धन करके बिहार सरकार अपनी लुभावनी चाल-चलन दिखा रही है, वहीं बिहार की सबसे विकसित भाषा मैथिली के अध्ययन-अध्यापन को हतोत्साहित करने का सारा उपाय बिहार की मिथिला बिरोधी मनोबृति को दर्शाता है जहाँ मैथिली कदापि संरक्षित और संबर्धित नहीं हो सकती है। उदहारण के तौर पर हाल ही मे "बिहार गीत " को लिया जा सकता है जो अत्यंत विभेदकारी और मिथिला की तौहीनी करनेवाली रचना को राज्य-गीतका दर्जा देकर लगभग साबित कर देना है कि मिथिला और बिहार एक साथ नहीं रह सकता है।
अत: आर्थिक पिछडापन के आधार पर और भाषा-संस्कृति-ऐतिहासिकता के साथ मिथिलावासी मैथिलों के अपना अलग पहचान को सम्मान देते हुए भारतीय गणतंत्र को और मजबूत करने के लिये मिथिला राज्य निर्माण परम अनिवार्य हो गया है। हम संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि हमें डर है कि हमारी संस्कृति मर जायेगी। हम भविष्य में अपनी पहचान शायद कभी नहीं बना सकेंगे। जब हमारी विशेषतायें ही मर जायेंगी तो भला स्वराज किस काम का रहेगा ? तो जरुरत है कि हमें बिहार के साथ न रखकर पुरानी अस्मिताओं के साथ भारतीय संबिधान के अनुसार अलग राज्य के रूप में पुनर्स्थापित किया जाये और आपका दल मिथिला राज्य निर्माण में हमारा समर्थन करे और सहयोग दे जिससे हम जन-जागृति करके अपने खोते अस्मिताओं की रक्षा कर सकें।
जिस गति से मिथिला के युवाओं का पलायन हो रहा है और सस्ते मजदूर आपुर्तिकर्ताके रूप में मिथिला प्रदेश प्रसिद्धि पा रही है, यह भी हमारे सभ्यता के लिये खतरनाक संकेत साबित हो रहा है। मिथिला क्षेत्र के उद्योग विपन्न जो थे सो थे ही, अब तो कृषि लायक भूमि भी बंजर और खाली परती के रूपमें पडी रह जाती है जिससे उत्पादकता पर गंभीर असर पडता जा रहा है। मिथिला की विशिष्ट उपज मछली, पान और मखान भी सपना जैसा ही दिखने लगा है। बाढ नियंत्रण का भी अभी तक किसी प्रकार का ठोस उपाय नहीं हो पाया है। शिक्षा के लिये प्रसिद्ध मिथिला दूसरे प्रदेशों में शिक्षा अर्जनके लिये अपने बच्चों को भेजने पर मजबूर है। शहर की ओर उन्मुख मिथिला गाँव और ग्रामीण संस्कृति से दुर होते हुए पर्यावरणीय प्रदूषणका भी शिकार होते जा रही है। काफी सारा जलस्रोत होते हुए भी जल-मार्ग न होना, पनबिजली उद्योग न होना, ये सारी कमजोरियाँ केवल राजनैतिक उपेक्षाओं का वीभत्स परिणाम है।
आध्यात्मिक यज्ञ-स्थल के रूपमें प्रसिद्ध मिथिला में धार्मिक पर्यटन का भी किसी तरहका विकास न होना अब शायद ही किसी राम-लक्ष्मण को अपने गुरुदेव विश्वामि त्रके साथ यहाँ विचरण के लिये आकृष्ट करे। भारत के अन्य भागों में जिस तरह से धार्मिक तीर्थ-स्थलों का विकास किया गया उसी प्रकार यदि मिथिला क्षेत्र में विभिन्न स्थानों का समुचित विकास किया जाता तो शायद दुर्गति कम होती, पर आज आजादीके ६५ वर्ष में ऐसा कुछ भी न होना और संसाधन के नाम पर शून्यता लादना, हमारी बदकिस्मती और उपेक्षा नहीं तो और क्या है? आज मिथिला के लोग भारत तथा संसार के अन्य भागों में रोजगार के लिये प्रवास में जाते हैं, कितने तो लौटकर घर का मुँह भी नहीं देख पाते। पिछडे वर्ग और दलितों का जीना दूभर हो गया है, क्योंकि घर पे स्वरोजगार या बोनिहारी जीवन-यापन का किसी तरह का साधन उपलब्ध नहीं होना, उनको घर से दुर जाकर अपने परिवारके लिये रोजी कमाने को बाध्य करता है, जहाँ उनका शोषण किया जाता है और गरीबी के साथ-साथ उन्हें जिल्लतके साथ जीने को मजबूर होना पडता है। अत: संसाधन के विकास के साथ-साथ बड़ी संख्या में हो रहे पलायन को रोकने के लिये भी मिथिला राज्यका निर्माण जरुरी है।
मिथिला राज्य निर्माण सेना जो एक गैर-राजनीतिक युवा-केन्द्रित जन-जागृति के लिये निर्मित समूह है जिसका मूल उद्देश्य मिथिलावासियों को अपने संवैधानिक अधिकार प्राप्ति के लिये जाग्रत करना है - पिछले जुन १ से १० तक मिथिला के विभिन्न जिलाओं जैसे सीतामढी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल और मधेपुरा सहित नौ जिलाओं की रथयात्रा भ्रमण करते हुए आमजनों से मिलकर हस्ताक्षर अभियाना चलाया, जिसमें स्थानीय मुद्दोंके साथ-साथ लोगों की भावना को समेटते हुए हस्ताक्षर संग्रह किया गया, जिसकी कापी साथ में संलग्न है और उपरोक्त उल्लेखित सारी समस्याओं को बखूबी बयाँ कर रही है और साथ में यह भी कि ये सारे लोग आश्वस्त हैं कि यदि हमें स्वराज / अलग राज्य मिले तो जरुर हम अपना विकास देख सकेंगे। हमारे उत्तरदायी जन-प्रतिनिधि केवल और केवल हमारे क्षेत्रों के लिये ही सोच पायेंगे। पटना से हमें जो बार-बार खोखला वादा मात्र मिलता है उसका अन्त होगा और हम अपने क्षेत्रोंके सर्वांगीण विकास के लिए सार्थक एवं गंभीर प्रयास द्वारा अभिष्ट को सुनिश्चित जरुर कर पायेंगे। ये हस्ताक्षर तो चलते-चलते लिया गया है और प्रतिकात्मक है, लेकिन ऐसा मानकर चला गया है कि हर तरहके और हर वर्गके लोगों का हस्ताक्षर जरुर समेटें जायें जिससे समाज के बिभिन्न वर्ग वर्ण की प्रतिनिधित्व का संकेतमें हो जाये।
आगामी समय में मिथिला राज्य निर्माण सेना ये सारी मुद्दाओं के प्रति भारत सरकार, बिहार सरकार, सम्बन्धित जन-प्रतिनिधि और समाजके बुद्धिजीवी सहित विद्वानों और युवा-समूहोंके साथ पंचायत राज चलानेवालों से करेगी जिससे राज्य निर्माण अपने प्रक्रिया में रहेगी भी तो विकास का गति आज से ही सही दिशामें गतिमान होगी। हम हिंसा कदापि नहीं चाहते, पर जिस प्रकार की हमारी बारंबार उपेक्षा हो रही है और हिंसात्मक अन्दोलनो को भारतीय प्रजातंत्र मे प्राथमिकता दी जा रही है वह एक अलग ही शिक्षा देती है। हमारे नाम पर केन्द्र से विशेष राज्य का माँग करके भी विकास को हमसे दूर रखा जा रहा है। यह न जाने कब हमारे सब्र के बाँधको तोड दे और आन्दोलन की निराशा से जन मानस मे आक्रोश के परिणामतः आन्दोलन में उग्रता भी प्रवेश पा जाये.कहना कठिन है। अत: सारे जिम्मेवार पक्षों को हम आगाह करना चाह रहे हैं कि हमें सब्र के भीतर ही रहकर शान्तिपूर्ण और बौद्धिक स्तर पर न्याय मिले जिससे हम अन्तर्राष्ट्रीय सीमा को छूनेवाले मर्यादा की सीमा में रहकर अपने को संवैधानिक अधिकार से सम्पन्न कर सकें। उत्तराखण्ड में केदारनाथ का ताण्डव ही उनके ऐश्वर्यको स्थापित करेगा ऐसा प्रकरण मिथिला में न दोहराने दें। यहाँ का जनसंघर्ष खतरनाक हो सकता है। शान्तिपूर्ण जन-जागरण अभियान संचालन में हमें सहयोग चाहिये और आपका मिथिला राज्य के निर्माण प्रति सुस्पष्ट नीति भी। हम चाहते हैं कि आप अपने चुनावी घोषणापत्र में मिथिला राज्य के प्रति समर्थन या विरोध स्पष्ट करके ही हमसे चुनावमें आपको चुननेके लिये बोलें। हम आपके ऐसे सारे कृतज्ञताओं के प्रति सदैव आभारी रहेंगे और वादा करते हैं कि हम अपने देशके लिये सदा ही मर-मिटने के लिये और हमारे गणतंत्र को और मजबूत बनाने के लिये अपनी ऐतिहासिक योगदान को पुन: दुहरायेंगे।