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User:Deepak singh parwal

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== हमें एक विश्व सरकार की जरूरत है: ==
  • क्या आपके संघ के साथ भी माल्थस का जनसंख्‍या सिद्धांत लागू होता है?
- नहीं, मेरा संघ इतना बुद्धिमान है कि प्रकृति को संतुलित करने की जरूरत नहीं है। इन चार सालों में यहाँ एक भी बच्चा पैदा नहीं हुआ। चार संन्यासियों की मृत्यु हुई। मैं इस पृथ्वी को अधिक भार नहीं देना चाहता। वह प्रकृति का सहज संतुलन का ढंग है।
यह पूरी तरह से सत्य है कि गरीबों की सेवा करने का विचार गरीबी का मूल कारण है। तुम अपनी जूठन फेंके जाते हो और गरीब लोग अधिक आशा से भर जाते हैं, और तुम्हारे पंडित-पुरोहित उन्हें कहे चले जाते हैं, 'बस थोड़ा-सा इंतजार करो, मौत के बाद तुम स्वर्ग जाने वाले हो।' और स्वर्ग में, ऊँट सूई के छेद से निकल सकता है परंतु कोई अमीर आदमी स्वर्ग के दरवाजे में प्रवेश नहीं कर सकता।
वे गरीबों को गरीब रहने के लिए सांत्वना दिए चले जाते हैं। वे उन्हें प्रसन्न करते हैं क्योंकि अमीर नर्क में सड़ेंगे। वे अमीरों को प्रसन्न करते हैं क्योंकि वे उनकी सांत्वना के द्वारा गरीबों को क्रांति करने से रोकते हैं। खुश अमीर बड़े-बड़े मंदिर और धर्मशालाएँ बनाए चले जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यदि वे यहाँ काम चला सकते हैं तो वहाँ भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे- और तो और ऊँट तक जुगाड़ लाता है तो क्या तुम सोचते हो कि टाटा, बिड़ला, डालमिया ये कोई राह नहीं ढूँढ लेंगे? निश्चित ही वे ऊँट से अधिक दिमाग रखते हैं।
निश्चित ही मैं गरीबी के खिलाफ हूँ, और मैं इसे पूरी तरह से समाप्त करना चाहता हूँ। परंतु इसको पूरी तरह से समाप्त करने के लिए एक बात अच्छी तरह से समझनी होगी कि गरीबी को बचाने के सभी तरीके खत्म करने होंगे। जो लोग बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं उन्हें पुरस्कार देना चाहिए। जो लोग बच्चे पैदा कर रहे हैं- उनको अधिक से अधिक आयकर लगाना चाहिए। लोग ठीक इसका उल्टा कर रहे हैं। यदि तुम्हारे अधिक बच्चे हैं, तो तुम्हें कम आयकर लगता है। यह आश्चर्यजनक है। सरकार की योजना परिवार नियोजन की है और दूसरी तरफ यदि तुम्हारा परिवार बड़ा है तो उसे सहायता दी जा रही है, तुम उसे मदद नहीं करते जिसके कोई परिवार नहीं है।
ये पंडित-पुरोहित और राजनेता गरीबी को जिंदा रखने के लिए जिम्मेदार हैं। और वे अब भी यह सब किए चले जा रहे हैं। इथोपिया को मदद भेजो, भारत को मदद भेजो, यह धनी देशों का अहंकार तृप्त करता है, और यह उन गरीब देशों को एक तरह की सूक्ष्म गुलामी देते हैं, मानसिक गुलामी, वे सदा तुम्हारे ऊपर निर्भर रहते हैं।
यदि मुझे सुना जाए, तो यह बहुत आसान मामला है। हमें एक विश्व सरकार की जरूरत है, हमें किसी तरह के देशों की जरूरत नहीं है। हमें एक सरकार, और एक विश्व की जरूरत है।
भारत जैसे गरीब देश भी, जहाँ लोग भूखे मर रहे हैं, अपना गेहूँ निर्यात कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि हम एक पागलखाने में जी रहे हैं! भारतीय मर रहे हैं, भूखे मर रहे हैं, और वे गेहूँ निर्यात कर रहे हैं। परंतु उन्हें निर्यात करना होगा, क्योंकि वे आणविक अस्त्र-शस्त्र बनाना चाहते हैं। वे कहाँ से आणविक विज्ञान लेंगे? उन्हें अधिक धन की जरूरत है।
सभी देशों की पचहत्तर प्रतिशत आमदानी युद्ध पर खर्च होती है- या तो लड़ाई या लड़ाई की तैयारी। यदि दुनिया एक हो, तो दुनिया की पचहत्तर प्रतिशत आमदनी पूरी तरह से मुक्त हो जाएगी जैसे सुबह की पहली किरण के साथ ही ओस की बूँदें समाप्त हो जाती हैं।
  • आपका राजनीति पर क्या कहना है?
- क्या मुझे कहने की जरूरत है?
मैं इसे अभिशाप देता हूँ। यह दुर्घटना है जिसके कारण हम सदियों से दुख भोग रहे हैं। राजनीति की कतई जरूरत नहीं है। परंतु राजनेता इसे गैरजरूरी नहीं होने देंगे क्योंकि तब वे राष्ट्रपति खो देंगे, उनका व्हाइट हाउस, उनके राजभवन उनके प्रधानमंत्री सब विदा हो जाएँगे।
राजनीति की जरूरत नहीं है, यह पूरी तरह से समय बाह्म बात है। इनकी जरूरत थी क्योंकि देश लगातार लड़ रहे हैं। तीन हजार सालों में पाँच हजार युद्ध लड़े गए हैं।
यदि हम देशों की सीमाएँ समाप्त कर देते हैं- जो कि मात्र नक्शों पर होती हैं न कि जमीन पर- कौन राजनीति की परवाह करेगा? हाँ, विश्व सरकार होगी परंतु यह सरकार सिर्फ कार्यकारी होगी। इसकी अलग से कोई प्रतिष्ठा नहीं होगी, क्योंकि वहाँ किसी के साथ किसी प्रकार की प्रतियोगिता नहीं होगी। यदि तुम विश्व सरकार के राष्ट्रपति हो तो क्या हुआ? तुम किसी तरह से किसी दूसरे से ऊँचे नहीं हो।
कार्यकारी सरकार का मतलब है जिस तरह से रेलवे चलती है। रेलवे का कौन प्रधान है इसकी कौन परवाह करता है? जैसे कि डाक विभाग चलता है और पूरी तरह से चलता है, डाक विभाग का प्रधान कौन है इसकी कौन चिंता लेता है?
देशों को विदा करना होगा और देशों के विदा होने के साथ ही राजनीति स्वत: विदा हो जाएगी, वह आत्महत्या कर लेगी। कार्यकारी सरकार में जो जरूरी है वही रहेगा। वह रोटरी क्लब की तरह बनाई जा सकती है, तो कभी काला व्यक्ति प्रधान होगा, कभी स्त्री प्रधान होगी, कभी चीनी प्रधान होगा, कभी रशियन प्रधान होगा, कभी अमेरिकन प्रधान होगा- परंतु वह चक्र की तरह घूमता रहेगा।
शायद छह माह से अधिक एक व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए, इससे अधिक खतरनाक है। तो छह माह के लिए प्रधान बनो और उसके बाद हमेशा के लिए खो जाओ। और कोई व्यक्ति फिर से नहीं चुना जाना चाहिए। यह मात्र दिमाग का दिवालियापन है कि एक ही व्यक्ति को बार-बार प्रधानमंत्री के लिए ‍चुना जाए। क्या तुम इसमें दिमागी दिवालियापन नहीं देखते हो? तुम्हारे पास कोई और बुद्धिमान व्यक्ति नहीं है? तुम्हारे पास मात्र एक ही मूर्ख है?
इस दुनिया में किसी राजनैतिक दल की कोई जरूरत नहीं है। व्यक्ति व्यक्ति के बारे में तय करे। किसी राजनैतिक दल की कोई जरूरत नहीं है। यह लोकतंत्र के लिए बहुत विध्वंसात्मक है। यद्यपि लोग कहते हैं कि लोकतंत्र राजनैतिक दलों के बिना नहीं हो सकता, मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि राजनैतिक दलों के होते लोकतंत्र नहीं आ सकता, क्योंकि उनके अपने निहित स्वार्थ हैं।
प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है किसी भी पद के लिए या किसी भी व्यक्ति को चुनने के लिए। और जो भी व्यक्ति आएगा वह तुम्हारे प्रधानमंत्री से अधिक बुद्धिमान होगा। चूँकि वह उस पद पर सिर्फ छह माह के लिए है तो वह अपने समय को इस विश्वविद्यालय का उद्‍घाटन या उस पुलिया का उद्‍घाटन, इस सड़क का उद्‍घाटन या सभी तरह की नासमझियों के उद्‍घाटन में जाया नहीं करेगा। और संसद में सांसद सभी तरह की नासमझियों व अर्थहीन बातों पर बहसें किए चले जा रहे हैं मानो उनके पास अनंत समय हो। एक छोटा से मसौदा स्वीकृत होने में सालों लग जाते हैं।
एक व्यक्ति जिसके पास मात्र छह महीने हैं वह इस तरह की नासमझियों में समय व्यर्थ नहीं कर सकता। वह वैज्ञानिक सलाहकार विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को रखेगा। उदाहरण के लिए अर्थव्यवस्था के लिए वह दुनिया के सभी अर्थशास्त्रियों से सलाह लेगा। उसके पास बहुत समय नहीं है। वह तृतीय श्रेणी के राजनेताओं को साथ नहीं रख सकता जो सिवाय झूठ बोलने के कुछ नहीं जानते। यदि उसे शिक्षा के बारे में कुछ तय करना है तो वह दुनिया के महान शिक्षा शास्त्रियों से सलाह लेगा परंतु अभी तो आश्चर्यजनक चीजें हो रही हैं...।
भारत में, जब मैं था, उस समय वहाँ की सरकार में जो व्यक्ति केंद्रीय शिक्षामंत्री था मैं उस व्यक्ति को जानता हूँ। मैंने कई नालायक देखे हैं, परंतु वह सिर्फ नंबर एक था...वह शिक्षामंत्री है। वह पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था के बारे में तय करेगा।
परंतु उसने कुछ भी तय नहीं किया। नौकरशाही उसी ढर्रे पर चलती रही। वे टुच्चे खेल खेलते रहे, पीठ में छुरा भोंकना, टाँग खींचना, शीर्ष पर पहुँचने के लिए सब तरह की जुगाड़ लगाना। मैं सूत्र देता हूँ: एक विश्व।