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User:Chaturevedi

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▌►☼ चतुर्वेदी जाती का संचिप्त इतिहास ☼ ◄▌

► ( ले. हर्षित चतुर्वेदी ) ◄

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मथुरापुरी के निबासी माथुर चतुर्वेदी ब्रह्मण हे ! इनका आदि काल से वहा का निबास होना पुरानात्र्रो से पूर्वतया होता हे ! तथा इन लोगो की महिमा का उल्लेख अनेक पुराणो में विश्ब्द रूप से पाया जाता हे ! इन लोगो की मनोव्रती सिद्ध करती हे ! मुनि व्रती से हे अपना समय व्यापन किया करते थे ! पुरातन लोगो से इन लोगो ??? मुनिषर, मुनीश आदि उपधि - विभूषित पाए जाते हे !

जगत गुरु शंकराचार्य जी ने मथुरा आने पर इन लोगो को ध्र्मनिस्ट एवं सतिय्क ब्रती में देख कर अपने लेख में इनके लिए वेद मूर्ति राज राजेशर आदि अपाधि - विव्हुशन नामोलेख के साथ इन्हें पूज्य माना हे इससे अनुमान होता हे ! की ये माथुर चतुर्वेद किसी पुरानी मथुरा (केशव देव ) से प्रथक श्री यमुना जी के तट पर विधमान कच्चे टीले पर ( जो की आज बस्ती के रूप में आबाद होकर "चौविया पाड़े" के नाम से प्रसिद्ध हे ! ) सामूहिक रूप में निवास करते हुए तप : स्बाध्याय में निरंतर हो समय अतिबहेत किया करते थे ! एबं आगंतुक यात्री तप्स्चार्य्य में निरत देख इनका अन्य वस्त्राद से सम्चर्ण किया करते थे जिसके द्र्र्रा इनकी संसार यात्रा नर्वाहित हुआ करती थी !


आगन्तुक यात्रीयो का प्रेम धीरे धीरे ज्यो ज्यो बड़ता गया त्यों त्यों पारस्परिक परिचय लेख रूप में परिवर्तित होता गया जिसके परिणाम स्वरूप यजमानी पुरोहितादी व्रत्ति ने विस्तिर्त्त स्थान प्राप्त किया ! इस यजमानी व्रत्ति का उत्कर्ष यहा तक बड़ा कि चारो सम्रदाय के आचार्य ने मथुरा आने पर दक्ष गोत्र में स्मुप्न्य "श्री उजागर जी चोवे" के चरणकमलो का श्रधा पूर्वक समर्चन कर उन्हें मथुरा तीर्थ गुरु पद से समकरत किया और आज्ञा ग्रहण कर ब्रज परिक्रमा करने का नियम प्रतिपालन करने कि प्रथा स्थापित करदी ! वेदअनुसार श्री वल्लभ कुल के आचार्य वये आज भी उजागर जी के बंश का पूजन कर उनके बताये हुए नियमों का प्रति पालन करते हुए ब्रज यात्रा किया करते हे !


इतना ही नही ! चोवे उजागर जी के पाद पदमो का समर्चन भारत के विशिस्ट ५२ नरेशो ने भी किया और उन्हें मथुरा जी का तीर्थ प्रोहित माना जिसके लेख बड़े चोवे जी के यहा बिध्मान हे और वे बावन राजाओं के पुरोहित कहे जाते हे !


इस परकार प्रोहित कार्य के आग्वन से मथुरा चतुर्वेदियो का अतुलित पर्ब्हब भूतल पर व्यास हो गया परिणामसबरूप बादशाही शाशन काल में इन लोगो को जो लिखित संदेह प्राप्त हुई हे उन्हें देखने से ज्ञात हटा हे की उस समय मथुरा में इन लोगो का पूर्ण प्रभाव बिघ मान था

►►☼चतुर्वेदी पद की प्राप्ति ☼◄◄

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इसी काल में ऋषि - महा ऋषि के दुँरा वेड मंत्रो की अनेक विधि रचना हुई | मथुरो ने इसमें भुत बड़ा भाग लिया | इस समय चारो वेदों के मन्त्र और वेदाअधिकार होने के कारन इन्हें चतुर्वेदी पदवी से विभूषित किया गया, सन ८३०० वि . के भगवन विष्णु की नामावली में इन्हें विष्णु रूप मानकर, चतुरात्मा चतुरभास्य चतुर्वेदी विदेक पात अर्थात चारो वेदों की आत्मा चारो वेदों के देवभाव के ज्ञाता चारो वेदों की विधा के ज्ञान्धिकारी चतुर्भुज भगवन का स्वरूप चतुर्वेदी ही हे | इसी प्रकार मथुरो का गोरव को वेदों दुआरा भी संपुष्टि मिली हे |

►►☼ चतुर्वेदी चोबे नाम से प्रसिद ☼◄◄

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इस उद्राव से यह भी स्पष्ट ज्ञात होता हे की १६७० वि. के पूर्व काल प्रकात भाषा विस्तार युग से ही माथुर ब्रमण चतुर्वेदी के अपभ्रंश रूप में साधारण जनता में " चंड विज्ज" या " चोबेजी " कहे जाने लगे थे | चोबे शब्द का प्रचीन एतिहासिक य्हप्रामार्ण हे की चतुर्वेदियो का चोबेजी शंशोधन बहुत प्राचीन और एतिहासिक हे | तथा यह प्रधान रूप से मथुरा के माथुर ब्रमानो के समस्त सामूहिक वर्ग ko संबोधन करने के रूप में प्रयुक्त होता रहा हे | खासकर उस काल में जब दुसरे ब्रमण दुवे तिवाड़ी, भट् मिस्सर, पानी पांडे आदि ख्यातियो से युक्त थे तथा दिवेदी तिवाड़ी उनकी एक एक शखा मात्र थी | चतुर्वेदियो को निम्न प्रकार में वाट गया है यह ५ प्रकार के होते है |

►► १. मीठी चोबे ◄◄

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मीठे चबे में उपभेद नही होता हे | वे सभी रचन मधुर बचन मधुर की मीठी चाशनी में पगे हे | अति मधुरता के कारण इनके ब्रज था राज स्थान के किसानो जाटो गुजरो के साथ मेना अहिरो के साथ घुलमिल जाने के कारण इनके मथुरी आचारो में काफी कमी आ गयी | ये हुक्का पने लगे ख़त पपेर बैठ कर्ट जाट गुजरो के साथ दाल रोटी खाने लगे , समय पर संस्कार यज्ञोपवित आदि से विरहित हो गये स्नानं करके भोजन करना गायत्री जप आदि कर्म उपेछित पड गये, इनता ही नही जबकि चितोड़ा भदोरिया आदि बंधुओ ने दूर से आकर मथुरा में अपने आवास पुन स्थापित किये तब इन्होने समीप हे रहते हुए भी मथुरा में अपना कोई दस बीस घरो का मोहल्ला नही बसाया | इन्होने मथुरा और मथुरास्थ बंधुओ से आत्मीय सम्बन्ध भी शिथिल कर लिए और कुछ अंशो में कुट जेसे बना लिए | इनकी यह मनोदशा और आचार स्खलन को देख कर मथुरास्थो के अनेक जानो ने दुखी होकर इनसे सम्बन्ध न्याग दिया | मथुरास्थो का इस दिशा में कोई संगठित या सुनिश्चित निर्णय नही था केवल व्यक्तिगत भावनाओ से लोगो को यह अरुचिकर बन गया |

►►२. कडुए चोबे ◄◄

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महुरास्थ मथुरो की प्रधान शाखा हे जो जो अपने मूल उत्पत्ति केंद्र मथुरा नगर में बसी हे | इसी में से समय पैर उक्त सभी शखाओ निकल कर बहार फेली हे मथुरास्थो के आचार विचारो स्वधर्म और कुल परम्परा की द्रढ़ता सभी के लिए अनुकरणीय और प्रेरणा दायक हे | अपने कठोर सयम और अविचलित भाव तथा आत्मगोरव के लिए मरमिटने की घनिष्ठता के कारण ही ये कडुए चोबे नाम से बिख्यात हुए हे | इनका कुला चार आज भी आदर्श हे जिसकी विशेषता यह हे की १ - ये कच्ची र्सोए किसी ब्रहामन या अन्य जाती के हाथ की ग्रहण नही करते |

2- इनके यज्ञोपवित आदि संस्कार शाश्त्रनुसार यथा समय होते हे | ३- ये हुक्का, चिलम, तमाखू , बीडी सिगरेट नही पीते मध् मांस प्याज लशुन सुल्फा गंजा अंडा केक होटल का किसी भी प्रकार का भोजन सबिकार नही करते हे | ४- ये रोटी य्ग्योपबित कंठी तिलक धारण करते, स्नान के बाद हे भोजन पते तथा यथाअवकाश गायत्री संध्या तर्पण श्रधा देवपूजन नेवेधनिवेदन देव स्तुति आदि ब्रहामन कर्मो का द्रढ़ता से पालन करते हे | ५- ये अपने को श्री यमुना माता का पुत्र मानते हे था माता जी की रक्षा क्रपा पूर्ण भरोसा रखते हे |

►► ३. कुलीन चोबे ◄◄

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ये मथुरास्थी गुरुओ के आचरण को निष्ठा और श्रधा के साथ धारण करने से प्रयासी मथुरा कुल के गोरव को स्भाभी मन के साथ निर्वाह करने वाले हे | बहार बस कर अन्य सभी ब्रहामन वर्गो से अपने को उच्च आचरण युक्त वनाये रखने के कारण से अपने को कठोर श्रेष्ठ माथुर कुल धारी होने के गोरव के हेतु से कुलीन कहते हे |

►►४. सेगवार चोबे◄◄

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सेगपुरा मथुरा से अपने प्रयाण के करण ये अपने को सेगवार या सेगर कहते थे | " केमर पूजे सेगर खाई " कहाबत के आशय से ये भी सिद्ध होता हे की त्रेता दापेर युगों के समय में ये सेगर (शमीछा ब्रछ ) की फली , सेगरफरी को सुखा कर उनका आहार में पुरोडाश (हलुआ लापसी ) बनाकर प्रयोग करते थे | शमी ब्रछ को छोक कर खेजड़ी कीकर कई नाम से जाना जाता हे | महर्षि वेड व्यास के तपोवन श्म्याप्राश के मुनिजन शमी अहारी थे | राजिस्थान में त्स्य देश में केर सागरी एक बहुप्रचलित सुखाया हुआ शाख हे | खेजड़ी को आहार में प्रयुक्त करने वाले केजडीवाल छोकर कीकर भोजी काकड़ा व्यास महर्षि देश में हे |


►►५. बदलुआ चोबे ◄◄

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अपनी मध्यमवर्गीय अत्र्थिक स्थति के कारण बड़े धनि स्र्मर्ध वर्ग में बिवाह सम्बन्ध न कर पाने के कारण परस्पर में कन्या के बदले में कन्या लेने के समाजिक व्यवहार के कारण ये बदलुआ कहे गये | यह यह बदलने की प्रथा पहलवानी काल में पुत्रो की बहुब्रदी के कारण मथुरा के मथुरास्थो में भी हो गये थी |