User:रमन विनीत कवि
हमारे प्रेम की परिणति तुम्हारा साथ पाना है।
प्रिये तुम जानती हो सब तुम्हें अब क्या बताना है?
प्रीति के पथ पर निरन्तर बढ़ रहे हैं हम।
स्वप्न से सुन्दर मनोरथ गढ़ रहे हैं हम।
तुम हमारे साथ में चलती रहो प्रतिपल,
लक्ष्य के उन्नत शिखर पर चढ़ रहे हैं हम।
सोचने दो सोचता जो भी जमाना है।
आँख में हैं स्वप्न तेरे प्रिय नाम अधरों पर।
आपकी स्वीकृति मधुर परिणाम अधरों पर।
मुस्कुराते से नयन जब बोलने लगते,
दिख रहा होता सुखद विश्राम अधरों पर।
बोलना कुछ भी नहीं बस मुस्कुराना है।
तुम्हारी माँग में मैंने भरा सिन्दूर अपना है।
तुम्हीं से हो रहा रोशन प्रिये हर नूर अपना है।
सजाई माथे पर बिन्दी तुम्हारे पाँव में बिछिया,
तेरी चूड़ी तेरा कंगन प्रिये कोहिनूर अपना है।
तुमको पा लिया मैंने नहीं कुछ और पाना है।
मेरा संबल मेरा साहस कि जीवन संगिनी हो तुम।
सुखद अनुभूति होती है मेरी अनुगामिनी हो तुम।
समर्पित कर दिया खुद को सम्भाले तुम मुझे रहना,
मेरे भावुक हृदय की एक केवल स्वामिनी हो तुम।
मुझे रख्खो हृदय में तुम वहीं मेरा ठिकाना है।
हमारे प्रेम की परिणति तुम्हारा साथ पाना है।
प्रिये तुम जानती हो सब तुम्हें अब क्या बताना है?
............रमन विनीत।
रूरा ,कानपुर देहात,उत्तर प्रदेश।
मो.9450346879