Draft:भारतीय लोक कला की लुप्त होती शैलियाँ
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भारत की लोक कला उसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। विभिन्न राज्यों में विविध प्रकार की लोक कलाएँ विकसित हुई हैं, जो न केवल सौंदर्य और रचनात्मकता को दर्शाती हैं, बल्कि समाज की परंपराओं, विश्वासों और ऐतिहासिक अनुभवों को भी व्यक्त करती हैं। हालाँकि, आज के आधुनिक युग में कई लोक कला की शैलियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं।
1. माधुबनी कला बिहार की माधुबनी कला, जो पारंपरिक रूप से घरों की दीवारों पर बनाई जाती थी, अब तेजी से लुप्त होती जा रही है। इस कला में देवी-देवताओं, प्रकृति और सामाजिक परंपराओं को चित्रित किया जाता है। आजकल के युवा कलाकार इस प्राचीन शैली को अपनाने के बजाय आधुनिक कलाओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
2. वर्ली कला महाराष्ट्र की वर्ली कला, जो आदिवासी जीवन के चित्रण के लिए प्रसिद्ध है, भी संकट में है। वर्ली कलाकार अब अपनी पारंपरिक कला को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आधुनिक जीवन शैली और तकनीकी विकास ने इस अद्भुत कला रूप को प्रभावित किया है।
3. पोहा कला उड़ीसा की पोहा कला, जिसमें चावल के आटे से बनाई जाने वाली कलाकृतियाँ शामिल हैं, भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। इस कला की प्रथा पहले गाँवों में बहुत प्रचलित थी, लेकिन अब इसके प्रति रुचि कम होती जा रही है।
संरक्षण के प्रयास इन लुप्त होती शैलियों को संरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार और गैर-सरकारी संगठनों ने इन कलाओं के पुनरुद्धार के लिए कार्यशालाएँ और प्रदर्शनी आयोजित की हैं। कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जा रही हैं।
निष्कर्ष भारतीय लोक कला की लुप्त होती शैलियाँ हमारी सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनका संरक्षण न केवल हमारे इतिहास को बचाने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को हमारे समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का भी कार्य करता है। हमें इन कलाओं को बचाने के लिए समर्पित प्रयास करने चाहिए ताकि यह धरोहर जीवित रह सके।