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Draft:जरासंध महादेव मंदिर

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श्री जरासंधेवर महादेव

श्री जय जरासंधेशवर महादेव वाराणसी का यह मंदिर मगध सम्राट महाराज जरासंध जी द्बारा निर्मित किया गया था और कुछ पुस्तकों में वर्णित जरासंध जी ने जब राजगीर के जरासंध अखाड़े में जब महाराज जरासंध जी को अपने मलयूद्ध के अठाईस्वे दिन जब महाबली भीम महाराज जरासंध जी से मलयुद्ब में लड़ कर काफी थक चुका था और उनसे लड़ने से इन्कार कर दिया था तो श्री कृष्ण ने अपने एक षड्यंत्र के तहत अर्जून और भीम तथा स्वयं तीनों ने मिल कर महाराज जरासंध जी के छाती पर चढ़ कर तब तक उन्हें दबाए रखा जब तक की वे बेहोश न हो गये ।बेहोशी के हालत में ही वे तीनों महाराज जरासंध जी को अपने रथ पर बैठा कर तेजी के साथ इसी काशी नगरी में ले आये जहां ईस श्री जय जरासंधेशवर महादेव मंदिर में उन्हें रखा गया।जब महाराज जरासंध जी को कुछ होश आया तो श्री कृष्ण हाथ जोड़ कर महाराज जरासंध जी के सामने खड़े होकर कुछ झुठ बोले महाराज राजगीर में मैंने आप के पुत्र सहदेव जी को वहां का राजा बना दिया है अब आप अपना शेष जीवन अपने द्बारा बनाये गये ईस जय श्री जरासंधेशवर महादेव जी के सेवा में बिताये ।यह बाबा भोले की नगरी मोक्षदायनी है।महाराज जरासंध जी थोड़ा हंसे और उन्होंने श्री कृष्ण की बातें स्वीकार कर अपना शेष जीवन इसी मंदीर में बिताया। उधर ब्राहमणो ने हल्ला मचा दिया की महाराज जरासंध जी को महाबली भीम ने दो भागों में चीर कर दो दिशाओं में फेंक दी जिसके कारन उनकी मृत्यु गया।और बाद में उनके लड़के सहदेव वहां के राजा बने। यह जय जरासंधेशवर महादेव का मंदीर का भुभाग एक बहुत काफी लम्बा चौड़ा भूमि में था जहां बच्चों के खेलने और फुलों का एक सून्दर बागीचा भी था ।एक छोटा सा जलकुण्ड का तालाब भी बना था जो अभी भी है गंगा के किनारे बने घाट का नाम भी जरासंध घाट था जो यह नाम अंग्रेजों के समय तक रहा।यह सारा जमीन काशी नरेश जिनके महाराज जरासंध जी दामाद के थे उनके द्बारा दिया गया यह भुखण्ड था। लेकीन ईस बहुत बड़े भूखंड के भाग को एक काली घटा ने अपना शिकार बना लिया। अभी यह मंदीर का शेष बचा भाग एक ब्राहमण परिवार के कब्जे में है जो यह मंदीर अपने समय का शिकार हो गया और अपनी दयनीय परिस्थिति में पडा हुआ सरकार की नजरों से ओझल अपनी र्जिणोद्बार की ओर निगाहें टिकाए भाग्य की राह देखे हुए की स्थिति पडा हुआ वहां के पुजारी का जीवन हार बना हुआ है।

  मुझे उस मंदीर के बारे में जरा भी कुछ नहीं पता था लेकीन वहीं के निवाशी श्री शीतला प्रसाद सिंह चंदेल जिनका बचपन वहीं बिता था ईस मंदीर के बारे में बताया ।मैं श्री शीतला प्रसाद सिंह चंदेल जी को साथ लेकर एक दीन उस मंदीर में पहुंचा।और वहां के पुजारी ब्राहमण से अपना क्षत्रीय परिचय देते हुए उससे उस मंदीर के इतिहास के बारे में कुछ जानना चाहा ।पहले तो ईस पुजारी जो तीन पुस्त से वहां रह रहा था कुछ भी बताने में काफी आना कानी की लेकीन जब मैं उसे अपना काफी भरोसा में लिया और उसे बताया की मैं एक इतिहासकार हुं और मुझे ईस मंदीर के बारे में कुछ पुराना इतिहास मुझे अपनी पुस्तक में लिखना है तब वह पंडित करीब आधे घंटा तक मुझसे बात चित किया और उस मंदीर के बारे में बहुत कुछ संक्षीप्त बातें बतायी ।लेकीन उसने वहां का फोटो मुझे नहीं लेने दिया।उससे नजरें छिपा कर ही मैंने ईस जै श्री जरासंधेशवर महादेव का फोटो अपने मोबाईल में कैद किया था।                 
  उस ब्राहमण पुजारी ने जो अपना नाम और उस मंदीर के जमीन का अतिक्रमण का जो निश्चित समय बताया था वह डायरी मेरा कहीं रखा गया जो मिल नहीं रहा है ईस लिय निश्चित समय तो नहीं बता सकता ।लेकीन यह सच अवश्य दें रहा हु की अंग्रेजों के समय में इस बनारस शहर का सबसे बड़ा कोतवाल मीर कासीम था जिसका नजर ईस जरासंध घाट के बहुत बड़े भुभाग पर पड़ा ।उसने अपना प्रशासनिक  के बल पर इस बगीचे के बहुत बड़े भुभाग पर अपना विशाल महल खड़ा कर दिया ओर जरासंध घाट का नाम बदल कर अपने नाम पर मीर घाट कर दिया ।तबसे यह गंगा के किनारे बना जरासंध घाट पुरी तरह मीर घाट बन गया जो आज भी इसी मीर घाट के नाम से मसहुर है ।मंदीर के मेन दरवाजे पर एक बहुत बड़ा बोंड लगा रहता था जिस लिखा हुआ था जय जरासंधेशवर महादेव वह बोर्ड बहुत पहले से गायब है उसके जगह मदीर के सबसे पिछले दिवार पर ही केवल जय जरासंधेशवर महादेव पेन्ट से लिखा हुआ है 'उसी के पास कुछ पुराने देवी देवताओं के छोटी मूर्ति रखा हुआ है।

मंदिर के जो मुख्य दरवाजा का भाग है ठीक उसके सामने एक नयी पंचमुखी मूर्ति हनुमान जी के माताजी का शायद लगा दिया गया है जो सही नाम मुझे याद नहीं आ रहा है। इससे जय श्री जरासंधेशवर महादेव जी का स्थान सामने न हो कर सबसे पीछे चला गया है शेष पीछे के भाग में वहां का पुजारी अपना निवास बनाये हुए हैं ।उस पुजारी ब्राहमण के बात चित से ऐसा लगा जैसे वह इस मंदीर की बातें वह किसी को बताना नहीं चाह रहा हो । यह मंदीर का पिछला भाग काफी टुटे फुटे और उदासीन अवस्था में देखा गया।अगर समय रहते इस मंदीर के सुन्दरीकरण की ओर किसी भी संस्था द्बारा राजसरकार या केन्द्र सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित नहीं किया गया तो यह पुराना ऐतिहासिक एवं धार्मिक मंदिर का अपना पुराना पहचान बिल्कूल ही समाप्त हो जायेगा।

🙏🙏जय बृहद्रथ महाराज 🚩🚩जय जरासंध महराज

Authore- DK SINGH (Jarasandh vanshi)

References

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